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चाणक्यसूत्राणि
नहीं आते | यह मनुष्यका कितना अधःपतन है कि उसका धन किसी भी अच्छे काममें न आये और वह निकृष्टतम उपायोंसे उपार्जन करता चला जाय। अनुभवी वृद्ध ठीक ही कह गये हैं-- " धर्माचारविहीनानां द्रविणं मलसंचयः " धर्माचारविद्दीन लोगोंका द्रव्यसंचय मलका घृण्य देर है ।
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अथवा- मन्द या प्रखर जैसी भी बुद्धि होती है संपत्ति भी उसी परिमाणसे अल्प या अधिक प्राप्त होजाती है ।
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बुद्धिमान् लोग अपने बुद्धिबलसे अधिक धन उपार्जन कर लेते हैं । मतिहीन लोग अपने पितृपैतामद्दीन संचित धनको भी खोदेते हैं या थोडासा उपार्जन कर पाते हैं । जोहरी दिनमें लाखों उपार्जन कर लेता है जब कि काष्ठविक्रेता पेट भरने योग्य धन भी कठिनतासे पाता है ।
शिक्षा, सौशील्य तथा विशेषज्ञोंके सत्संगसे बुद्धि प्रखर होती है । बुद्धि की प्रखरतासे धन, मानं आदि अपेक्षित वैभव पाना सुकर होजाता है। बुद्धिद्दीन लोग इस लाभ से वंचित रहते हैं ।
बुद्धिरेव जयत्येका पुंसः सर्वार्थसाधनी । यद्वलादेव किं किं न चक्रे चाणक्यभूसुरः ॥
मनुष्य के समस्त प्रयोजन सिद्ध कर देनेवाली बुद्धि ही संसारका सर्वश्रेष्ठ वह साधन है जिसके बलसे विप्र चाणक्यने क्या क्या नहीं कर दिखाया ? उसने बुद्धिबल से भारतको अखण्ड राष्ट्रका रूप दिया, राष्ट्रको चरित्रवान् बनाया तथा उसे चन्द्रगुप्त जैसा शक्तिशाली सम्राट् दिया ।
ये याताः किमपि प्रधार्य मनसि पूर्व गता एव ते । ये तिष्ठन्ति भवन्तु तेऽपि गमने कामं प्रकामोद्यमाः ॥ एका केवलमर्थसाधनविद्यौ सेनाशतेभ्योऽधिका । नन्दोन्मूलनदृष्ट्रवीर्यमहिमा बुद्धिस्तु मा गान्मम ॥ चाणक्यका निज सुबुद्धि विषयक आत्मविश्वास सतत स्मरणीय है कि " जो लोग मनमें कुछ सोचकर गये हैं वे तो चले ही गये । जो लोग हैं