________________
चाणक्यसूत्राणि
देवचरित्रवाले श्रेष्ठ व्यक्तियोंका प्रमाद या आलस्यसे कभी भी अपमान न करना चाहिये।
विवरण-प्रमाद या मालस्यसे देव, द्विज, गुरु, प्राज्ञ आदि उच्च श्रेणीकी विभूतियोंका अपमान नहीं करना चाहिये । इससे उनके श्रद्धालु. ओंका शत्रु बनना पडता है और अपनी विचारशीलता, शिष्टाचार तथा मनु. व्यताका अपमान होता है। पाठान्तर-न कदाचिदेवकृतान्यवमन्तव्यानि । देव, गुरु या राजाके कार्योंकी अवहेलना न करनी चाहिये ।
(घटनास्थलके प्रत्यक्ष दर्शनका महत्व )
न चक्षुषः समं ज्योतिरस्ति ॥४०३॥ चक्षु संसारकी सबसे महत्वपूर्ण ज्योति है। विवरण- चक्षुके बिना यह जगत् ज्योतिहीन होजाता है । चक्षुके समान कोई ज्योति नहीं है । वस्तुदर्शनमें चक्षु जैसी महत्वयुक्त दूसरी कोई ज्योति नहीं है।
चक्षु ही समस्त ज्योतियों का उपयोग करनेवाली ज्योति है। उसके बिना समस्त ज्योति अनुपयोगी होजाती हैं । चक्षुके बिना अनन्तकोटि सर्य भी मनुष्यको एक तिनका तक नहीं दिखा सकते। उसके बिना उनका मूल्य खद्योतके बराबर भी नहीं रहता । इसलिये मनुष्य चक्षुरक्षामें विशेष ध्यान रक्खें।
चक्षुका विषयों के साथ अतियोग, अयोग या मिथ्यायोग होनेसे उसमें रोग उत्पन्न होकर उसके नष्ट होनेका प्रसंग होजाता है । इसलिये मनुष्य चक्षुके सदाचार के साथ साथ समस्त सदाचारोंका पालन करें तो उससे भारोग्य तथा इन्द्रियविजय दोनों ही प्राप्त होते हैं।
मातापिताके शारीरिक दोष, उदररोग तथा अन्य संक्रामक रोगादि दोषोंसे अन्धता पैदा होती है। कर्ताब्याकर्तव्यका निर्णय करनेमें परिस्थि