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ब्रह्मचर्य विनाशकी स्थिति
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विद्यावंशके भाई बहनोंके इस पवित्र संबंधको सुरक्षित रखना ही स्वाभाविक तथा सुरक्ष्य मानना चाहिये, जितना कि सहोदर सहोदराका संबन्ध स्वभावसे सुरक्षित रहता और माना जाता है। यदि किन्हीं सतीर्थ्य विद्यार्थी विद्यार्थिनियों के इस संबंधके कलुषित होने की संभावना हो तो इस प्रवृत्तिका पूर्ण दमन करनेकी आवश्यकता है। यह सूत्र सतीयौँको कालुष्यशंकासे भतीत रखनेवाली सावधानवाणीके ही रूपमें कहा जा रहा है । यह सूत्र कहना चाहता है कि शिक्षाग्रहणके नामपर सतीथ्य विद्यार्थी विद्यार्थिः नियों का निकट निवास विपत्से रहित नहीं है।
घृतकुम्भसमा नारी तप्ताङ्गारसमः पुमान् ।
तस्मादग्निश्च कुम्भश्च नैकत्र स्थापयेद् बुधः ।। नारी घृतकुम्भके तथा पुरुष तप्ताङ्गारके समान होता है। इसलिये खुद्धिमान् शिक्षाप्रबन्धक स्त्रीपुरुष विद्यार्थियोंका एकत्रावस्थान न होने दें। विद्यार्थी विद्यार्थिनियों की सहशिक्षा तब ही समर्थनीय हो सकती है जब उनकी विद्या उनके मनोंमें भ्राताभगिनोके पवित्र संबंधको सबढ बनाये रखने के लिये नैतिक उच्चादर्शको समुज्ज्वल रख सके । विद्यार्थी विद्यार्थिनियों दोनोंपर गुरुओंका यह शासन रहना चाहिये कि वे विद्याग्रहणके अतिरिक्त अन्य किसी (उच्छखल) भावनाको मनमें स्थान न दें और उन्हें अनिष्ट. कारी संबंधसे बचाये रखने में शिथिलता या प्रमाद न करें। विद्यास्थान विद्याका ही प्रभावक्षेत्र रहना चाहिये । विद्यास्थानों में विद्याबहिर्भूत उच्छं. खल कल्पनाओंको प्रवेशाधिकार नहीं मिलना चाहिये । राष्ट्रको अपनी शिक्षा. शालाओंको अनैतिकतासे कलुषित नहीं होने देना चाहिये। __ इस सूत्र में अभिगमन शब्द द्वारा पुरुष विद्यार्थियों के निकट सम्बन्ध होजानेके माशंकाजनक परिणामपर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है। इस सत्र में अभिगमनके परिणामको ही ब्रह्मचर्य विनाशक बताया जा रहा है। जो निकट संपर्क या जिस निकट संपर्कका परिणाम अनिष्टकारक है उस निकट संपर्कले मात्मरक्षा करने रूपी उपदेश के अभिप्रायको ध्यान में रखकर