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चाणक्यसूत्राणि
(देहाङ्गाकी नग्नताकी असह्यता स्त्रियोंका अलंकार )
__ स्त्रीणां भूषणं लज्जा ॥ ३६५।। लजा स्त्रियोंका भूषण है । विवरण-जैसे पौरुष अर्थात् पराक्रम या विपत्सम्मुखीनता पुरुषोंकी विशेषता है इसी प्रकार लजा अर्थात् अपनी मान-मर्यादाकी रक्षा स्त्रियोंका' विशेष भूषण है।
निर्लज स्त्री निराभरण है। अपने देहांगों का प्रदर्शन करनेकी भावना हो निलं जता है। अपने भगिनीरूप तथा मातरूपकी रक्षा करना ही स्त्रियों का कर्तव्य है । निर्लज स्त्रियां समाजको पतित करनेकी भावनासे कलंकित होती है । समाजको पवित्र रखना स्त्रीपुरुष दोनों ही का सम्मिलित कर्तव्य है। इसके लिये स्त्रीपुरुष दोनों समानरूपसे उत्तरदायी हैं। समाजकी पवित्रता - ही समाजका भषण है । समाजको अपनी निलं जतासे पतित करनेवाली स्त्री समाजसे तो शत्रुता करती तथा स्वयं अपने लज्जारूपी स्वाभाविक भूषणको त्यागकर अध:पतित होजाती है। चारित्रिक अधःपतन अपने स्वाभाविक सौन्दर्यको नष्टभ्रष्ट करडालनेवाली भयावनी स्थिति है।
इस प्रकार के अधःपतन से मात्मरक्षा करनेकी भावना ही नारीका स्वाभाविक धर्म है। समाजमें इस नारीधर्मको महत्वपूर्ण स्थान मिलने या देने से समाजका पतन अनिवार्य रूपसे अवरुद्ध होजाता है । मुखको छोड़कर शेष अंगोंकी नग्नताकी असह्यता, दैहिक आकर्षकताका यथाशक्ति आवरण तथा दुःसाहसिकताका त्याग स्त्रीदेहधारियों का विशेष स्वभाव होता है । उनकी इस लज्जासे ही कुटुम्बोंमें कुलधर्म तथा परम्पराप्राप्त सनातन जातिधर्म सुरक्षित रहते हैं । जब स्त्रियां निर्लज्ज होकर अपने रूपयौवनको जानबूझ. कर सर्वसाधारणके सामने लानेका प्रयन्त करने लगती हैं तब परम्पराप्राप्त शालीनता आदि कुलधर्म तथा जातिधर्म नष्ट होकर समाजमें विशृंखलता पैदा होजाती है तथा देश अधार्मिक बनजाता है।