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योग्य शासक बननेकी विधि
सत्य नहीं है, ( अर्थात् जिस धर्ममें मनुष्यकी अन्तरात्मा नहीं बोल रही है, जिसे मनुष्य किसी संसारी प्रभावमें आकर ऊपरवाले मनसे कहता है वह धर्म नहीं होता ) वह सत्य सत्य नहीं है, जिसमें छलका मिश्रण होता है (और जिसमें बातोंको तोड-मरोडकर घुमा-फिराकर कहा जाता है । )
(योग्य शासक बननेकी विधि )
विज्ञानेनात्मानं संपादयेत् ॥ ८॥ राज्याभिलाषी लोग विज्ञान ( व्यवहारकुशलता या कर्तव्याकर्तव्यका परिचय प्राप्त करके ( अर्थात् सत्यको व्यवहार भूमिमें लाकर या अपने व्यवहारको परमार्थका रूप देकर) अपने आपको योग्य शासक बनाये ।।
विवरण- आदर्शशासक तथा चतुरशासक बनना राज्याभिलाषियोंका सबसे मुख्य कर्तव्य है। अपने को एला बनाना राज्योपार्जनसे भी अधिक मह. वका काम है। बिल्लो के भारसे टूटे छींक के समान राज्य तो अयोग्य लोगों को भी मिल जाता है. परन्त चतुर आदर्शशापक बनना उससे कहीं अधिक महत्व रखता है। इसलिये शासकीय विभागमें जाने के इच्छुक लोग शासन विभाग को अपने स्वार्थसाधनका क्षेत्र न समझकर उसमें सेवाभाव से जायें। वे शास. कीय योग्यता सम्पादन के महत्वपूर्ण काममें प्रमाद न करें। यदि वे इसमें प्रमाद करेंगे तो न तो स्वयं कहींके रहेंगे और न राज्यसत्ताको स्थिर रहने देंगे। . __यदि राजकीय विभागों में जानेवाले लोग जितेन्द्रियताको अपना भादर्श बना लें, योग्य बनें, अपने आपको प्रजाके सामने अनुकरणीय चरित, आदर्श पुरुषके रूपमें रखें, तो अनुकरणमार्गी संसार राजचरित्रका अनुसरण करके • धर्मारूढ हो जाय और तब दुश्चारित्र्य देशसे स्वयमेव निर्वासित हो जाय ।
राज्याधिकारी लोगोंके धर्मको पालने लगनेपर प्रजामें अपने माप धर्मकी रक्षा होने लगती है । भारतमें ठीक ही कहा है