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( धूर्तोका वशीकरण मन्त्र ) सोपचारः कैतवः ॥ ३४४ ॥ धूर्तलोग दूसरोंके कपटसेवक बनाकरते हैं ।
विवरण - धूर्तलोग मीठी बार्तो, रमणीय उपहारों, परितोषक उपकरणोंसे अपना उल्लू सीधा करना चाहाकरते हैं । सेवा तथा परितोषके उपकरण उपचार ' कहाते हैं । उपचार शब्द उत्कोच अर्थ में भी व्यवहृत होता है ।
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पाठान्तर---- नोपचारः कैतवः
यह पाठ अर्थहीन है ।
चाणक्यसूत्राणि
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( धूर्ततावाली सेवा उपचार है )
काम्यैर्विशेषैरुप चरणमुपचारः ।। ३४५ ।।
विशिष्ट काम्य पदार्थोंकी भेटोंसे दूसरोंको अपनी असत्यकी दासतामें सहायक बनानेका प्रयत्न करना धूर्तीकी सेवाका स्वरूप होता और यही ' उपचार ' कहाता है ।
विवरण - धूर्तलोग अपने सेव्य मनुष्यकी नीचप्रवृत्तियोंकी तृप्ति के लिये इंधन जुटाकर उसकी गिरावटसे लाभ उठाने की दुरभिसंधि रखते हैं । भूतों की सेवा भी प्रच्छन्न लूट ही होती है ।
( शंकनीय सेवा )
चिरपरिचितानाम् अत्युपचारः शंकितव्यः ॥ ३४६ ॥ चिरपरिचित व्यक्तिकी अनुचित सेवा शंकनीय होनी चाहिये । विवरण - किसीकी भी अनुचित सेवाको शंकाकी दृष्टिसे देखना चाहिये । विशेष रूप से चिरपरिचितकी अनुचित सेवा चाटुकारिता है । अत्युपचार चाटुकारिताका ही दूसरा नाम है । चाटुकार के फंदे में फंसजाना