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________________ अपनी भूल सुधारो ३०३ प्रभुपदपर अभिषिक्त व्यक्ति भाश्रितका कल्याणकारी होता है। जब कोई किसीका माश्रय स्वीकार करता है तब उसमें भाश्रितपालनकी शक्ति देखकर ही उसका माश्रित बनता है। मनुष्य स्वभावसे उसीका आश्रित बनता है जहांसे उसे अभाव दूर करनेका आश्वासन मिल जाता है। समाज अपने योग्य सेवकोंको ही राज्याभिषिक्त करके उन्हें प्रजापालकका मापन देता है। राजा समाजका ही प्रतिनिधि होता है। राजाका प्रभुत्व स्वीकार करने. वाली प्रजा राजाको समाजका ही प्रतिनिधि मानती है । इस अर्थमें प्रजा ऊपरसे देखने में तो राजाका परन्तु वास्तव में समाजका ही प्रभुत्व स्वीकार करती है । इसका अर्थ यह हुआ कि किसी व्यक्तिका राजाका कोपभाजन बनना समाजका ही कोपभाजन होना है। राजाका द्रोह करना समाजक ही द्रोह करना है । इसलिये राजभक्त प्रजाको राजरोष देखते ही अपना अपराध पहचानकर आत्मसुधार करना चाहिये । इसी प्रकार राजाका भी कर्तव्य है कि यह समाजको ही अपने प्रभुके रूपमें पहचानकर अपनेको राष्ट्रसेवककी स्थिति में रखकर अपने समाज या लोकमतको प्रकुपित करनेवाले आचरणका संशोधन करके अपने सच्चे प्रभु राष्ट्रके प्रतिनिधि लोकमतको प्रसन्न रखे । मातृताडितो वत्सो मातरमेवानुरोदिति ॥ ३४१ ।। जैसे मातासे ताडित बालक ताडनजन्य रुदन करता हुआ भी माता हीके पास जाता तथा उसीके आंचलमें मुंह छिपाकर उसीसे अपना रोना रोता है, इसीप्रकार मनुष्य अपने हितैषियों, खजनों, गुरुओं तथा प्रभुओंके उचित कारणसे कुपित होजानेपर उन्हें ही अपनाये रहे तथा आत्मसुधार करके अपनी ओरसे उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करता रहे ! विवरण-- अपने अपराधका पालन करके उन्हें प्रसन्न करना ही उन्हें
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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