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________________ २८८ चाणक्यसूत्राणि विवरण- वह तो उत्साह तथा अपनी दृढताको ही शुभ मुहूर्त मानकर काम प्रारंभ करे | कर्तव्यको तत्काल पालन करनेवाले कर्तव्यशील के लिये नक्षत्रकी अनुकूलता देखनेका अवसर नहीं है । कर्तव्यशील के लिए नक्षत्रकी अनुकूलता कोई महत्व नहीं रखती । उसके लिए कर्तव्यकी अनिवार्यता ही अनुकूलता है । ( दोषज्ञानकी स्थिति ) परिचये दोषा न छाद्यन्ते ॥ ३२५ ॥ परिचित होजाने पर किसीके दोष अज्ञात नहीं रहते। विवरण - परिचितके दोषगुणके संबंध में अभ्रान्त तथा निःसंदिग्ध होजाना ही सच्चा परिचय है। किसीका विश्वास करनेसे पहले उससे सुपरिचित होजाना अत्यावश्यक है । पर्याप्त परिचयके बिना किसीका विश्वास करलेनेसे प्रतारित होने की पूरी आशंका रहती है। परिचय होनेपर गुणदोष दोनों प्रकाश में आजाते हैं । पूरा परिचय हुए बिना लोकचरित्रको समझना असंभव है। परिचय के बिना मनुष्य के विषय में पर्याप्त भ्रम रहता है । ज्ञानी अपने जैसे ज्ञानीका ही विश्वास करसकता है । मनुष्य स्वयं कसौटी बनकर ही दूसरे ज्ञानी के साथ सहयोगका संबन्ध जोड़ने की योग्यता पाता है 1 ( बुरोंके लिये संसार में कोई भला नहीं ) स्वयमशुद्धः परानाशंकते ।। ३२६ ।। स्वयं पापी व्यक्ति अपनी कसौटी पर कसकर दूसरे भद्र लोगों को भी पापी समझलेता है । विवरण- स्वयं पतित व्यक्ति दूसरों को भी अपनी ही कसौटी पर कसकर सबको अपने ही समान अशुद्ध समझकर अपना सहयोगी बनाना चाहता है । अशुद्ध के लिये संसार में भले लोग नामकी कोई वस्तु नहीं होती 1
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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