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चाणक्यसूत्राणि
इसी प्रकार समाजकी शोभा बढानेवाले पुत्ररत्न उत्पन्न करनेवाली पत्नियों में स्वाभाविक आग्रह होता है कि उन्हें ऐसे पति मिले जो समाजको सुशोभित करनेवाले हों ।
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विवरण- पुत्ररत्नोंकी उत्पादक पत्नियां आदर्शच्युत स्त्रैण पतिके आदर्शसे अपने घरों के वातावरणको कलंकित देखना नहीं चाहतीं । जितेन्द्रियता ( अर्थात् धर्मविरोधी कामभोग न चाइना ) ही संसारका सच्चा सुख तथा मानवजीवनकी आकांक्षणीय सार वस्तु है । सारग्राही लोग आलस्य तथा अवैध भोगको कभी नहीं अपना सकते तथा विषयलोलुप निकम्मे होकर कभी नहीं पड़े रहसकते । जिसकी जिसमें प्रयोजनसिद्धि हो वह उसीके लिये प्रयत्न करे। उदाहरण के रूपमें दुग्धार्थी धेनुसेवासे दुग्ध प्राप्त कर सकता है वृषभ दोहनसे नहीं ।
अथवा - जैसे पुष्पार्थी शुष्कतरुसिंचन नहीं करते, इसीप्रकार मनुष्योचिन जीवन बिताने तथा अपनी सन्तानोंके लिये सुशिक्षाका वातावरण बनाकर अपनेको समाजका भूषणस्वरूप बनाकर रखने की इच्छुक परिनय अमनुष्योचित लोलुपता तथा लम्पटतावाले अवीर पतियोंसे प्रसन्न नहीं gian
पाठान्तर -- पुष्पार्थिनः सिंचन्ति अद्भिः पुष्पतरुम् ।
जैसे पुत्रपार्थी लोग जलोंसे पुष्पवृक्षको ही सींचते हैं, इसी प्रकार सुखार्थी लोग अपने जीवनको सुखके प्रस्रवण संयमस्रोतस्विनी से ही सिंचित करें ।
( भ्रान्त उपायों से सुखान्वेषण निष्फल )
अद्रव्यप्रयत्नो बालुकाक्काथनादनन्यः ॥ ३२० ॥ जैसे भूख मिटानेके लिये बालुकाको उबालना निरर्थक होता है इसी प्रकार भ्रान्त उपायोंसे सुखान्वेषण भी व्यर्थ होता है ।
विवरण - इन्द्रियासक्ति ऊपर से सुखद दीखनेपर भी सुखकी ऊपपर