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अलस विद्याका अनधिकारी
विवरण - जब राज्यसंस्था लोकनिन्दाका पात्र नहीं बनती, तब ही राष्ट्रमें गुणों का प्रसार होता है। इसके विपरीत राज्यव्यवस्थामें भ्रष्टाचारी लोकनिन्दित देशद्रोही अयोग्य लोगोंको प्रवेशाधिकार मिलजाना राष्ट्रका कलंक है । यह स्थिति राष्ट्र की पतितावस्थाको द्योतक है । धार्मिक दृष्टि से उन्नत राष्ट्र ही नररत्नोंको उत्पन्न करनेवाली रत्नखान होता है ।
अयश शब्द गुणहीनता अपकीर्ति तथा निन्दाका वाचक है। गीताके शब्दोंमें " संभावितस्य चाकीर्तिमरणादतिरिच्यते '' प्रतिष्ठित मनु. ब्यकी अकीर्ति मरणसे अधिक कष्टप्रद है।
अपमानं तथा लजा वन्धनं भयमेव च ।
रोगशोको स्मृतभगो मृत्युश्चाष्टविधः स्मृतः॥ अपमान, अकर्तध्यानुष्ठानसे प्राप्त लजा, अन्धन, भय, रोग, शोक, स्मृतिभ्रंश इन सात भेदोंके कारण मृत्यु माठ प्रकारकी मानी जाती है ।
समाजसे अननुमोदित अवैध कर्म करने से अयश होता है। इललिय मनुष्य अपने जीवन में अपवादका अवसर न आने देने के लिये पूर्ण सावधान रहे । किंवदन्ती है- " परीवादस्तथ्यो हरति महिमानं जनरवः '' सच्ची निन्दा करनेवाला निष्पक्ष न्याय दण्डधारी लोकमत मनुष्य की महिमाको नष्ट करडालता है।
( अलन्द विद्या का अनधिकारी) नास्त्यलसस्य शास्त्राधिगमः ॥ ३१६ ॥ पुरुषार्थहीन अजितेन्द्रिय व्यक्तिको शास्त्र पर अधिकार प्राप्त नहीं होता।
विवरण- शास्त्रपर पूर्ण अधिकार पाने के लिये सुदीर्घ कालतक निर. न्तर श्रद्धा, उत्साह तथा गहरी लगनसे सतत जाग्रत रहकर उसका विलो. उन तथा हृदयका मंथन करके ज्ञानामृत निकालना पडता है । यद्यपि मनु