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क्षत्रुओंका रणकौशल शिक्षणीय
गुण हितकारी होने से पूजनीय होता है । 'गुणैरुत्तमतां याति ' मनुष्य गुणों से ही उत्तमता, श्रेष्ठताका लाभ करता है । गुण समाजके हित के लिये अत्यावश्यक हैं। गुणी लोग समाज के भूषण, समाजकी शक्ति तथा संपत्ति होते हैं। समाज में सुखसमृद्धि रखनेके लिये समाजमें सद्गुणका माइत होना अत्यावश्यक है। स्वयं गुणी लोग ही गुणग्राही होसकते हैं। इन सब दृष्टियोंसे राज्यसंस्थाका निर्माण करनेवाले मनुष्यसमाजको सद्गुणों से विभू पित रखने के लिये अपने शिक्षाविभाग में सद्गुणी सदाचारी गुणी लोगोंको आदर के साथ रखना चाहिये ।
( शत्रुओं का रणकौशल शिक्षणीय )
शत्रोरपि सुगुणो ग्राह्यः ॥ ३०६ ॥ शत्रुका भी सद्गुण ग्रहण करने योग्य होता है ।
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विवरण - शत्रुके शत्रुताचरणका ही विरोध करना कर्तव्य होता है। यदि कभी शत्रुके गुणका भादर करनेका अवसर मिले तो अपनी गुणग्राहिताका परिचय देते हुए उससे उचित बर्ताव करना चाहिये | कुछ लोग शत्रुताचरण करने के अभ्यासी होते हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं कि ये लोग असत्यके दास तथा सत्यके द्वेषी होते हैं । इन लोगों की असत्यकी दासता तथा इनके सत्यद्वेषको कभी भी इनका गुण नहीं माना जासकता । हाँ, इन लोगों के पास रणकौशल नामकी जो वस्तु होती है वही इनसे सीखने योग्य गुण होता है । अपने प्रतिपक्षीको पराजित करनेके लिये इनके पास जो रणकौशल होता है असत्यविद्रोही सदाचारीको भी शत्रुदमनके लिये उस रणकौशलकी आवश्यकता होती है । इसलिये धर्मसंस्थापक वीरकी दृष्टि में विपक्षदमनकी चतुराई ही शत्रुके गुणके रूपमें आदरणीय वस्तु होसकती है । जब कभी शव के पास ऐसी कोई चतुराई दोखे तब ही उसे सत्यका ही साधन आदरणीय गुण समझकर अपनाना चाहिये तथा उस गुणसे उस शत्रुका विनाश करके सत्यकी रक्षा करलेनी चाहिये । शत्रुका जो आचरण असत्यकी दासता में प्रयुक्त होनेके कारण सत्यद्रोही रणक्षेत्र में