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जीवनमें अन्नका स्थान
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तोत्पादक नहीं, इसी प्रकार नीचोंका विद्यालाभ उनकी नीच प्रवृत्तियों को ही अनेकगुणा कर देनेवाला होजाता है।
विवरण- नीच लोग विद्यालाभसे सुधरते नहीं, प्रत्युत उससे उनकी नीचताको बढावा, सहकार तथा प्रोत्साहन मिल जाता है। मनुष्यमें मान वोचित कर्तव्यनिष्ठा पैदा करना रूपी विद्यालाभका जो महत्वपूर्ण उद्देश्य है वह नीचोंको उनकी नीचतारूपी अयोग्यताके कारण अप्राप्त रहता है । नीचोंके पास विद्या पहुंचाना उनके हाथ में छुरा पकडादेना होता है ।
(चरित्र का जीवनव्यापी प्रभाव )
( अधिक सूत्र ) ऐहिकामुत्रिकं वृत्तम् । मानवका चरित्र उसके वर्तमान और भावी दोनों कालोपर अपना अमिट प्रभाव रखता है।
विवरण- मानवका दुष्ट चरित्र नमक और अपयश दिलाता है। उसका सुचरित उसे दोनों कालों में स्वर्ग और कीर्ति देता है । इस दृष्टि से मुच. रित्र का संग्रह और रक्षा मनुष्यका परम कर्तव्य है । मानवजीवनके माख. दुःख उसके चरित्र के भले-बुरे होनेपर निर्भर करते हैं ।
पाठान्तर --- ऐहिकामुष्मिक वित्तम् । सद्भावोपार्जित तथा सद्भावोपार्जित धन वर्तमान तथा भावी दोनों में सुखदुःखदायी होता है।
(जीवन में अन्नका महत्वपूर्ण स्थान )
नहि धान्यसमो ह्यर्थः ॥२७६।। संसारमें अन्न जैसा जीवनोपयोगी काई पदार्थ नहीं है । विवरण- जीवनधारक पदार्थों में मन्नका सबसे मुख्य स्थान है। भन्न स्वयं ही अर्थोपार्जनका लक्ष्य है । इसीसे अन्न संसारका सर्वश्रेष्ठ पदार्थ है। " अन्नं वै प्राणिनां प्राणाः" मन ही प्राणियों के प्राण हैं । समस्त भूमण्डल के एकत्रित रत्नादि पदार्थ एक भी मनुष्यकी भूख नहीं मिटासकते ।