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चाणक्य सूत्राणि
विवरण - मृत्युका भय उन्हीं लोगोंको होता है जो अपने मानवोचित कर्तव्यपालन से अपना जीवन सफल नहीं करपाते । अपने मानवोचित कर्तव्यका पालन करनेवाले लोग प्रत्येक क्षण कर्तव्यपालनकी सफलता के कारण विजयी जीवन बितानेवाले मृत्युञ्जयी बनजाते हैं । यही उनका अपने जीवनको सार्थक करना कहाता है । अपने जीवनको सार्थक करना ही अमर बनजाना है । जीवनकी जो व्यर्थता है वही तो मृत्युभीति है । सत्य में सम्मिलित जीवन ही सत्यस्वरूप होता है। इसके विपरीत असत्यको दासता करना जीवित रहते हुए भी अमानवोचित जीवन बिताना रूपी मृतावस्था है । असत्यविरोधरूपी अत्याज्य, अनिवार्य कर्तव्यपालन करते हुए कर्तव्यशील व्यक्तिकी सङ्घर्ष वरण की हुई मृत्यु भी उसे कर्तव्यपालनका आनन्द देनेवाली होती है। उसके विपरीत देहका भोगार्थ दुरुपयोग करनेवाले व्यक्तिकी मृत्यु उसे भोगसुख से वंचित करनेवाली विभीषिका होती है । ( साधुकी उदार दृष्टि )
कस्यचिदर्थं स्वमिव मन्यते साधुः || २६५ ॥
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महामांत साधु लांग पराय धनाका उनके पास रक्खी हुई अपने धन जैसी सत्यकी धरोहर मानते हैं । अर्थात् वे पराये धनोंको भी अपने धनोंके समान ही सदुपयोग में आता देखना चाहते हैं
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विवरण - व्यक्तिगत धनाध्यक्ष बननेकी भावना समाजमें स्वार्थबुद्विका प्रचार करनेवाली समाजद्रोही भावना है । व्यक्तिगत धनाध्यक्ष तारूपी दूषित भावनाको त्यागकर समाज के प्रत्येक सदस्यकी भौतिक सम्पत्तिका सत्यके अधिकारों में आजाना ही, सार्वजनिक कल्याणको अपना कल्याण समझनेवाली सहानुभूति, समाजबन्धन या शान्तिदायक सामाजिक आदर्श है । यही साधुओंके जीवनका आदर्श हैं। साधुलोगोंके इस आदर्श को समाज संगठन में सुप्रतिष्ठित करदेना ही राजधर्म है । इसीको 'महाजनो येन गतः स पन्थाः' कहा जाता है । यही राजचरित्र आदर्शसमाजकी रचना करनेवाला समाजबन्धन है । साधुलोग किसीके धनको पराया मानकर उसका