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বাগবাগি
उनके लेखानुसार उन्हें इन सूत्रोंको चार आदर्श प्रति मिली थीं। उन्होंने उन्हींसे मूल सूत्रों तथा पाठभेदोंका संकलन किया है। किस प्रतिसे कौनसा पाठभेद लिया इस विषय में उनकी लेखनी मौन है। कल्पना होती है मानना चाहिये कि उन्होंने चारोंसे ही पाठभेद लिये हैं। चारों से कौनसीको मुख्य रखकर व्याख्या सूत्रसंख्या दी है यह निर्देषा भी उनकी लेखनी नहीं कर रही है । उनको मिली चारों प्रति निम्न प्रकार है-(1) कालिकटनिवासी श्री गोविन्द शास्त्रीसे प्राप्त, (२) अनन्त शयनम् यन्त्रालयमें मुद्रित, (३) मैसूर राजकीय संग्रहालयके अध्यक्ष भार श्री महादेव शास्त्रीसे प्राप्त ( ४ ) मैसूर राजकीय मुद्रणालयमें द्वितीया वृत्तिके रूपमें १९२९ ख्रिष्टाब्दमें मुद्रित कौटलीय अर्थशास्त्रके मन्तमें संलग्न
उन्होंने जिप प्रतिको मुख्य मानकर व्याख्या की है उसमें इन सूत्रोंको ६ अध्यायों में विभक्त किया है। उनकी व्याख्याधार प्रति के अनुसार चाणक्यसूत्रों की संख्या ५९९ है । अर्थात् प्रथमाध्यायमें १००+ द्वितीयमें ११६+ तृतीयमें ७९+ चतुर्थ में १०८+ पंचममें ११३+ षष्ठमें ८३ - संकलन ५९९ । इस टोकामें सूत्रोंको दी हुई ५७१ संख्याके अनुसार उनके अध्यायों का स्थान निम्न है- १०१ सूत्रपर प्रथम, २१३ पर द्वितीय, २९० पर तृतीय, ३९२ पर चतुर्थ, ५०२ पर पंचम, तथा ५७१ पर षष्ठ अध्याय समाप्त होता है। परन्तु इस अध्याय विभागका कोई उचित आधार प्रतीत नहीं होता।
इन सूत्रों में विषयक्रम तथा अर्थसंगति दोनोंका प्रायः अभाव है। इनमें सूत्रकारने राजचरित्र निर्माणके साथ राष्ट्र चरित्र निर्माणको प्रेरणा देनेकी दृष्टि से मनमें समय समयपर मानेवाली विचारतरंगोंका ज्यों का त्यों संकलन किया प्रतीत होता है। संभावना है कि उन्हें इनको विषयानु. सारिता देने का अवसर नहीं मिल पाया। इनमें राजनीति, सामान्यनीति, समाजधर्म, अपस्यविनय, मादि विषयोंक। विप्रकोण वर्णन हुमा है।