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________________ भूमिका प्रचारमें बाधा उपस्थित करने में अपना हित समझनेकी भूल कर बैठती है । संसारमें राजशक्तिका दुरुपयोग करनेवाले समाजशत्रु सदासे होते मा रहे हैं । मार्य चाणक्यने ढाई सहस्र वर्ष पूर्व ज्वालामयी भाषामें सशरीर विद्यमान रहकर तत्कालीन भारतवासियोंकी मनोदशाको भारतकी शतधा. विच्छिना राजशक्तिका दुरुपयोग करनेवाले समाजके शत्रुभोंके विषैले प्रभावसे मुक्त करने का जगप्रसिद्ध महान् अभिनय करा दिखाया था और इस देशसेवात्मक यज्ञकी पूर्तिके लिए उसमें देशद्रोहियोंकी चुन चुनकर पाहुति दी थी। उपरि करवालधाराकाराः क्रूरा भुजङ्गमपुङ्गवाः । अन्तः साक्षाद् दाक्षादीक्षागुरवो जयन्ति केऽपि जनाः ॥ कुछ उदारकर्मी लोग ऊपरसे देखने में तो विषधर सर्प तथा मसिधाराकी लपलपाती कठोर भाकृतिके समान महा कर बनकर रहते हैं परन्तु इम लोगोंका मन्तरात्मा लोक हितके माधुर्य में इतना पगा रहता है मानो इन्होंने द्राक्षाओंसे माधुर्यकी दीक्षा ले रक्खी हो । कर्मके तो कठोर परन्तु हृदयके मधुर विराटकर्मी लोग संसारमें अति न्यून होते हैं। मार्य चाणक्य इसी प्रकारके लोगों से थे। भाज हमारे राष्ट्रको राजनीति विशारद सुचतुर वैद्यको गम्भीरतम मावश्यकता है । इसलिए है कि भाज भारतवासी मासुरी प्रभावमें आकर अहितको हित समझ कर मोहनिद्रासे अभिभूत हुभा पडा है। इस विकराल स्थिति यह हमारा सौभाग्य है कि चाणक्यकी दुग्धकुम्भी ज्वालामयी भाषामें लिपिबद्ध राजचरित्र तथा राष्ट्रचरित्रका निर्माता चाणक्यसूत्र उनका प्रतिनिधित्व करने के लिये आज भी हमारे पास है। इन सूत्रोंका प्रत्येक शब्द सुन्दर मणिमुक्तागर्भित सुगम्भीर भाव. सागरका वहन कर रहा है । पाठक इस व्याख्याको द्वार बनाकर यत्र तत्र देखेंगे कि इनमें मार्य चाणक्यका अभूतपूर्व राजनैतिक कौशल तथा व्याव. हारिकता कूट कूट कर भरी है। चाणक्य के दूरदर्शी उदार मनमें राज्यव्यवस्था तथा राष्ट्रचरित्र निर्माणके सम्बन्धमें जितनी सुधारक योजनायें पी वे सब संक्षेपसे इनमें सन्निहित हैं।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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