________________
ऐश्वर्यका फल
अनिवार्य रूपसे आवश्यक है कि राज्यव्यवस्था संभालनेवाले लोग अपनी या राज्यसंस्थाकी ओरसे निर्वाचित न होकर, राष्ट्रकी ओर से निर्वाचित हों । राष्ट्र-व्यवस्था के लिये ऐसे व्यक्ति निर्वाचित हों जो राष्ट्रकी आज्ञाको विश्वस्तता के साथ राष्ट्र-कल्याणकारी सच्ची राजाज्ञाका रूप देडालें और बडी श्रद्धा से उसका पालन करें।
राजाज्ञा हि सर्वेषामलंघ्यः प्राकारः । राजाज्ञा सबके लिये अलंघनीय दुर्ग है ।
१९१
1
जैसे फल वृक्ष के स्वरूपको प्रकट करदेता है, इसी प्रकार पालित अपालित, अर्धपालित या अवहेलित राजाज्ञा राज्यसंस्थाके यथार्थ रूपको प्रकट कर देती है। यदि राजाज्ञा प्रजापीडक हो तो वह राज्यसंस्थाको प्रजाद्रोही सूचित करदेती है | राज्यसंस्था होनेपर किसी न किसी प्रकारकी राजाज्ञाओं का प्रचारित होना अनिवार्य होता है । यदि वे राजाज्ञायें प्रजा- पीडक हों तो व प्रजाका हार्दिक अनुमोदन न पासकनेसे उस राज्यसंस्थाको राज्यकी अनधि कारिणी सिद्ध करदेती हैं और प्रजाको राज्यसंस्थाका विद्रोही बनाती रहती हैं। प्रजाका अनुमोदन न पासकनेवाली आज्ञाको प्रचारित करनेवाली राज्यसंस्था, प्रजाकी हृदयरूपी उर्वर भूमिका अनुरागरूपी रस- ग्रहण करने तथा राष्ट्रमें शान्तिरूपी फर पैदा करने में असमर्थ होजाती है । इस प्रकार की राज्यसंस्था अशान्तिरूपी विषैला फल उत्पन्न करनेवाला विष- वृक्ष बनजाती है । इस विष-वृक्षका मूल देशद्रोही राज्याधिकारियों के स्वार्थ-मलिन हृदयों में रहता है । यदि राष्ट्रमेंसे इस प्रकारके विषवृक्षोंका मूल नष्ट करना हो तो देशद्रोही राज्याधिकारियोंको अपने हृदयका स्वार्थरूपी मल त्यागने के लिये विवश करना ही पडेगा । देशके विचारशील लोगोंको इस विष-वृक्ष के मूलको पहचानकर उसके ऊपर प्रजाशक्तिकी सामूहिक कल्याण-भावनाका कुठार चलाकर उसे ध्वस्त करडालना चाहिये ।
अथवा - आज्ञा देना और उसे पलवाकर छोडना ऐश्वर्यका फल # जिसकी आज्ञा शिरोधार्य तथा मान्य होती है उसीका ऐश्वयं सुरक्षित रहता है। जिसकी भाज्ञा उपेक्षित होजाती है उसका ऐश्वर्य निष्फल होता है ।