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चाणक्यसूत्राणि
देश-सेवा ही राज्याधिकार प्राप्तिकी योग्यताकी कसौटी होनी चाहिये। राज्याधिकारियों के निर्वाचनमें इन बातोंका ध्यान अनिवार्य रूपसे रक्खा जानेपर ही अपनी ओरसे राज्यसंस्थाके प्रतीक्षक ( उम्मेदवार ) बनने की देशमें फैली हुई महामारी राजनीतिसे बहिष्कृत होसकती है और तब ही राष्ट्र अपने योग्य व्यक्तियोंको अपनी ओरसे विश्वस्त देशानुरागी सेवकोंके रूपमें नियुक्त करके राज्यसंस्था संभालनेका गंभीर कर्तव्य पूरा कर सकता है। पाठान्तर- अनुरागस्तु हितेन सूच्यते । अनुराग हितकारी चेष्टामोसे पहचाना जाता है।
(ऐश्वर्यका फल )
अज्ञाफलमैश्वर्यम् ॥ २११॥ यह पाठ अर्थहीन होने से प्रामादिक है । पाठान्तर- आशाफल मैश्वर्यम् । ऐश्वर्यका फल आशा है। विवरण- संसारमें उसीकी आज्ञा मानी जाती है जो अपने ऐश्वर्यको अपनी प्रबन्धशक्तिसे सुरक्षित रखता है। राज्यसंस्था राजाज्ञाका रूप लेकर प्रकट होती या आत्मप्रकाश किया करती है। राष्ट्र ही राजाको सिंहासनारूढ करता है । राष्ट्रको अवहेलना करके राजसिंहासनपर बलात् आधिकार कर बैठनेवाले को सिंहासन चाहे मिल जाय परन्तु वह राठ के उस हृदयमें जो राष्ट्रका सच्चा स्वामी है स्थान नहीं लेपाता। राके हृदयकी सम्मतिके बिना राज्याधिकार हथियाबैठनेवाले राजाका राष्ट्रविरोधी होना अनिवाय है। ऐसे राजाका राज्य तबतक ही रह सकता है, जबतक राष्ट्र की सम्मिलित शक्ति उसे पराभूत न करे । राष्ट्रविरोधी आज्ञा देनेवाला राजा प्रजाको पग. पगपर पीडित करता रहकर उसे विद्रोही बनाता चलाजाता है। क्योंकि मटका हृदय ही राष्ट्र का सच्चा राजा होता है, इसलिये राज्यव्वयस्थाको सहइयरूपी सच्चे सजाकी सर्वमान्य भाज्ञाक रूप से प्रकट करने के लिये यह