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चाणक्यसूत्राणि
भड़क उठी हुई विद्रोहमयी अग्नि साम्मुख्य तथा विप्लवका रूप लेकर वृथापीडक अवमन्ता या अपकर्ताको नष्ट-भ्रष्ट करनेपर उतर आती है ।
विवरण- राज्याधिकारी लोग राजशक्तिके मदमें आकर ऐसा मूढ पग न उठावें, जिससे पीडित निराश प्रजाको कानूनको हाथ में लेकर प्रत्याक्रामक बनने के लिये विवश होजाना पंडे । सहनकी सीमा पार होनेपर सहनेवालोंमेंसे भडकी हुई माग विप्लवका रूप धारण करके समग्र राष्ट्रको नष्ट-भ्रष्ट करडालती है । राज्याधिकारी लोग प्रजाको कुपित करने को साधारण बात और उसके कोपको साधारण हानि न समझकर उससे बचे रहे । राजा लोग जानें कि तुम्हारे राज्यको जो राजशक्ति मिली है वह प्रजाकी दी हुई धरोहर ही तो है । संसारका इतिहास कह रहा है कि जब जब राजा लोग अपने राजकीय कर्तव्य भूलकर शक्ति-मदान्त्र होकर अन्याय और अत्याचारपर उतरे हैं तब-तब प्रजाको ऐसे राजाओंसे राजशक्ति छीनने के उद्देश्य से कानून को हाथमें टठा लेने के लिये विवश होजाना पडा है ! ( मन्त्रसभा में निर्बुद्धको मत बैठाओ )
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भर्वाधिकं रहस्युक्तं वक्तुमिच्छन्त्यबुद्धयः ॥ २०९ ॥
निर्बुद्धि लोग राजाके द्वारा एकान्तमें कहे हुए गंभीर राजकीय रहस्योंको प्रकट कर देना चाहते हैं
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विवरण -- सूत्रकार कहना चाहते हैं कि राजाकी मंत्रणा सभा में अविश्वसनीय लोगों के प्रवेशको निषिद्ध रखनेके लिये अत्यन्त सावधानता बर्तनी चाहिये | निर्बुद्ध लोग अपनी इस दुष्प्रवृत्तिके घातक परिणामको न समझकर अपनी असंयत इच्छा के आधीन होकर अपने प्रभुका रहस्यभेद करके, राष्ट्रको हानि पहुंचाकर, अपनी ही हानि करते हैं। रहस्य मे कायंघाती तथा राष्ट्रघाती व्याधि है ।
पाठान्तर भेरीताडितं रहस्युक्तं वक्तुमिच्छत्यबुधः ॥
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