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सम्बन्धका आधार
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रहो । उसे मत जानने दो कि तुमने उसकी गुप्त शत्रुताको पहचान लिया। तुम उसे अंधेरेमें रखते रहकर उसपर उचित समयपर भाक्रमण करो। तुम शत्रुको परास्त करने ( अर्थात् उसके असत्यको पददलित करने ) के लिये जिस किसी उपायका अवलंबन करोगे, उसकी दृष्टि में वह कपट, छल माया आदि होनेपर भी, तुम्हारी दृष्टिमें वही असत्य-विरोधरूपी सत्यनिष्ठा होने के कारण, वह असत्यका दलन करनेवाली सत्यकी विजय ही होगी। विजिगीषुका ध्येय तो अपने भाराध्य सत्यको ही विजयी बनाना है।
(संबन्धका आधार ) अर्थाधीन एव नियतसंबंधः ॥ १९१ ।। लोगोंसे संबंध उद्देश्यके अनुसार होता है। विवरण- उद्देश्यके ही अनुसार लोगों के साथ संबंधोंकी स्थापना होती है। मित्रसे मित्रता तथा शत्रुमे शत्रुताका संबंध जडजाता है। उद्देश्यकी एकतासे मित्रता तथा उद्देश्य की भिन्नतासे शत्रुताका संबंध स्थापित होजाता है। प्रजोजन ही मानवोंकी परस्पर संयोजक रज्जु है । संसार में अहेतुक संबंध असंभव है। अलब्धका लाभ, लब्धकी रक्षा तथा रक्षितका वर्धन इन तीन भौतिक प्रयोजनोंसे ही लोगोंके संबंध जुडते हैं । अज्ञानी जगत् भौतिक स्वार्थोके पीछे भटकता है । ज्ञानी मनुष्य भौतिक स्वार्थों के पीछे न भटककर परमार्थ या वास्तविकताका हो अनुगमन करता है । ज्ञानी अज्ञानीके अर्थ तथा अनयों के दृष्टिकोण एक दूसरेसे सर्वथा भिन्न प्रकारके होते हैं। ज्ञानीकी दृष्टि में तो मानसिक स्थितिको सुरक्षित रखनेवाला सत्य ही अर्थ या काम्य वस्तु होता है । उसकी उदार दृष्टिमें मानसिक दृढताको नष्ट करनेवाली भौतिक पदार्थों की लालसा अनर्थपश्नमें गिनी जाती है। इसके विपरीत अज्ञानीको दृष्टि में भौतिक सुखोंके साधन ही अर्थ समझे जाते हैं। उसकी दृष्टि में भौतिक सुखोंको त्यागने या उपेक्षापक्षमें रखने का आदर्श या मानसिक दृढता, सुख-त्याग या दुःख-वरणके नामसे अनर्थ ही माना जाता है।