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आलस्यसे विनाश
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विवरण- वर्तमानकी सफलता ही अतीतको भी सफल कर डालती और भविष्यत्की सफलताको भी सुरक्षित कर देती है। जिसका वर्तमान सुरक्षित होता है उसके भूत भावी दोनोंका सफलतासे मंडित होना और रहना निश्चित है। तीनों कालों में एक-सा समुज्ज्वल रहनेवाला सत्य ही विक्रमी राजाकी राज्यधी हैं। निवसन्ति पराक्रमाश्रया न विषादन समं समृद्धयः।
पराक्रमके आश्रयसे रहनेवाली समृद्धिये भीरुता या विषादके साथ नहीं रहतीं।
निरुत्साहादेवं पतति ॥१८५॥ उत्साह के बिना निश्चित सफलतायें भी हाथसे बाहर खडी रहजाती हैं।
विवरण- इस संसारकी स्थिति हो ऐसा है कि सत्यनिष्ठको असत्य. विरोधके संग्राम-क्षेत्र में योद्धाके रूपमें शस्त्रबद्ध होकर अविरत नियुक्त रहना पडता है । सत्यनिष्ठ व्यक्ति इस संग्रामको विपत् न समझकर उसका उत्सा.
के साथ सौभाग्यवुद्धिसे स्वागत करता है । इसके विपरीत सत्यहीन व्यक्तिको असत्यसे संग्राम हो विपत्ति दोखता है । इसलिये असत्यविरोधको विपद् माननेवाला व्यक्ति अपनेको असत्यकी दासतामें ही निरापद माना करता है । उत्साहहीनता असत्यको ही दासता है । सत्यनिष्ठ उत्साहीके हृदय में विपभोति नामकी कोई स्थिति नहीं होती।
सत्य ही उत्साहका असमाप्य उत्स है । सत्यके बिना कर्ममें दृढता या मात्मविश्वास होना संभव नहीं है । सत्यमें मारूढ रहनेका सन्तोष ही पुरु. पार्थ या कर्मोत्साहका जनक होता है। उत्साहहीन महढ व्यक्ति पुरुषार्थ नहीं कर सकता । पुरुषार्थके बिना सहजसाध्य काँमें भी अदृढता माजाती है और सफलताको मसाध्य बना डालती है।
विपदोऽभिभवन्त्यविक्रम रहयत्यापदुपेतमायतिः । नियता लघुता निरायतेरगरीयान्न पदं नृपश्रियः ॥