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चाणक्यसूत्राणि
ऋजुपुरुषों को ही राज्यसंस्थामें रखनेका राष्ट्रपर ऐसा मनोवैज्ञानिक दबाव पडता है कि सारा राष्ट्र भलाईकी मोर प्रवाहित होजाता है और राष्ट में सतयुग माविराजता । ऋजुस्वभाववाले अर्थात् निष्कपट फर्तग्य पालनेवाले लोग समाजके भूषण और सौभाग्य होते हैं । पाठान्तर- बहूनपि गुणानेको दोषो ग्रसते ।
( महत्वपूर्ण काम अपने ही भरोसेपर ) महात्मना परेण साहसं न कर्तव्यम् ॥१६२॥ सत्यनिष्ट वर्धिष्णु महात्मा लोग दुष्कर दीखनेवाली सत्य रक्षा दूसर साथियोंके भरोसे न करके अपने ही भरोसेपर करें।
विवरण-- बडे बननेके इच्छुक लोग दूसरों के भरोसेपर साहस न कर बैठा करें। परनिर्भरशील होना महत्व नहीं दिला सकता। साहस सदा अपने ही भरोसेपर करना चाहिये ।
सत्यनिष्ठ महात्मा लोग दुष्कर दीखनेवाली सत्यरक्षा दूसरे साथियों के भरोसेसे न करें। सत्यनिष्ठा स्वयं ही विश्वविजयीपन है। सत्यनिष्ठका सत्यः स्वयं ही उसकी पूर्णता है । उसमें ऐसो कोई न्यूनता नहीं है कि जो साथि योंके सहयोगसे पूरी होनेवाली हों । सत्यकी मिठासमें इतनी शक्ति है कि वह सत्यनिष्ठको सत्यरक्षाके संबन्धमें परनिरपेक्ष बनाकर उसे संग्रामक्षेत्रम अकेला ही लेजाकर खडा करदेती है और उसके मनमें चिन्ताको स्थान नहीं लेने देती कि मेरे साथ कोई चल रहा है या नहीं ?
एकोऽहमसहायोऽहं कृशोऽहमपरिच्छदः ।
स्वप्नेप्येवंविधा चिन्ता मृगेन्द्रस्य न जायते॥ मृगेन्द्रको, मैं अकेला हूं, मेरा कोई साथी नहीं है मैं, कृश और सामग्रीहीन हूं इस प्रकारकी चिन्ता सपनेमें भी नहीं होती । सत्यके पीछे चलना, सत्य उद्देश्य रखना, यही सत्यनिष्ठकी अभ्रान्त अनन्तशक्तिमत्ता है। सत्यनिष्ठका न तो कोई नेता होता है और न कोई अनुयायी । जब कभी