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चाणक्यसूत्राणि
( समयके दुरुपयोगसे हानि ) नास्त्यनन्तरायः कालविक्षेपे ॥ १५२ ।। कालके दुरुपयोगमें निर्विघ्नता नहीं है। दीर्घसूत्रता विघ्न संकुल है।
विवरण- कर्तव्योंको ठीक समयपर न करके उन्हें टालते चलेजाने (अर्थात् उनका काल खोते चले जाने ) में निश्चित रूपसे विघ्न माखडे होते हैं । कर्तव्योंको टालते रहना अपना काम बिगडवानेके लिये विनों को नौतना है । विघ्नको अन्तराय कहा जाता है। विघ्नविजेता मानव ही कर्तव्य करसकता और उसका फल पासकता है। जो मनुष्य उचित समयपर काम करके अपनेको अपने पुरुषार्थ से निर्विघ्न रखता है, उसके कामोंका उचित समय कभी नहीं चूकता और उसे कभी असफलताका मुंह देखना नहीं पडता । जो काममें विघ्न न आने देना चाहे वे कर्तव्यका काल न बीतने दें। कर्तव्यका काल न बीतने देनेमें ही कर्तध्यकी सफलताका रहस्य छिपा हुमा है । विचारशील लोग जबतक अपने पास मानेवाले प्रत्येक क्षणपर सदुप. योगकी मुद्रा नहीं मार देते, तबतक जीवनके एक भी क्षणको बीतनेकी माज्ञा नहीं देते। उनके जीवनका एक भी क्षण 8नके पाससे व्यर्थ भाग जानेका दुःसाहस नहीं कर सकता । इस प्रकार प्रत्येक क्षणका सदुपयोग करनेवालेके जीवनका महान बनजाना सुनिश्चित हो जाता है। संसारके अच्छे कामोंके समस्त उदाहरण समयरूपी धनके सदुपयोगके ही परिणाम हैं। मनुष्य के जीवनको एक विशाल भवनके रूपमें कल्पना करें तो यह भवन जिन इंटोंसे बनता है वे ईटें हमारे पास एक एक करके आनेवाले क्षण हैं। इन क्षणोंके सदुपयोगसे ही विशाल स्वर्गीय दिव्यजीवन नामका दिव्यभवन बनकर खडा होजाता है।
पाठान्तर--- नास्त्यनन्तरायः कालक्षेपः । कालक्षेप करनेवाला मनुष्य निर्विघ्न नहीं होता । दूसरे शब्दों में निर्विघ्न वही मनुष्य होता है जो कालक्षेप नहीं करता।