________________
चाणक्यसूत्राणि
विवरण-शक्तिबाह्य कर्म न करने में ही मानवका कल्याण है। "जितनी शक्ति उतना काम । उससे अधिक दुःखोंका धाम ।" इस लोकोक्तिके अनुसार शक्ति ही कर्तब्यकी सीमा है। तुम यह जानो कि जितनी तुममें शक्ति है उतना ही तुम्हारा कर्तव्य है। तुम्हारा कोई भी कर्तव्य तुम्हारी शक्तिसे अधिक नहीं हो सकता। तुममें जिम कामकी शक्ति नहीं है वह तम्हारा कर्तव्य भी नहीं है। यदि तुम ऐसा काम छेड बैठोगे तो निश्चित रूपमें असफल होओगे और हाथ मल मल पछताओगे । तुम भूल कर भी ऐसे काममें हाथ मत डालो, जिसे पूरा करनेकी तुम्हारे पास शक्ति न हो। तुम पहले अपने मन में शक्तिको तोल देखो। यदि तुम्हारे पास कर्मसे अधिक शक्ति हो तो तुम निःशंक होकर कामको अपना लो।
राजनीतिमें प्रभाव, उत्साह तथा मन्त्र भेदसे शक्ति तीन प्रकारको मानी जाती है। कोष, दण्ड तथा बल ये तीन प्रभुशक्ति (प्रभावजनक शक्ति ) कहाती हैं । विक्रम तथा बल ये दो उत्साहशक्ति नामकी दूसरी शक्ति कही जाती हैं। पांचों अंगोंसे संपन्न मन्त्र मन्त्रनामकी तीसरी शक्ति कहाती है । गजा इन तीनों शक्तियोंसे सम्पन्न रहकर राजकाज करे । “ मन्त्रमूला: सर्वारम्भाः" इस २४ व सूत्रमें मन्नके पांचों अंगोंका सविस्तर वर्णन हो चुकनेसे, यहां ग्रन्थविस्तारभयसे पुनः वर्णन नहीं किया।
( अमृतभोजी मानव ) स्वजनं तर्पयित्वा यः शेषभोजी सोऽमतभोजी ।। १३६ ॥
अपने उपाजनमेंसे स्वजनों, बन्धुओं, अतिथियों, पोष्यों, दीनदुःखियों तथा समाजकल्याणकारी संस्थाओंको भरणपोपण कर. नेके पश्चात् शेष घनसे जीवनयात्रा करनेवाले लोग अन्नभोजी होनेपर भी अमृतास्वादी या अमृतभोजी होते हैं।
विवरण- “ केवलाघो भवति केवलादी " केवल अपना पेट भरने. वाला और अपने माश्रित उपाश्रितों तथा अपने उपजीव्य समाजके भरणपोषणकी चिन्ता न रखनेवाला केवल पापका उपार्जन करता है। केवल