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चाणक्यसूत्राणि
देखता, उसके राजकाजका बिगडजाना अनिवार्य है । उसके राज कर्मचारि. यों में स्वेच्छाचार बढकर प्रजामें रोष और राज्यकी हानि होना अनिवार्य होजाता है।
( कर्तव्यनिश्चयके साधन ) प्रत्यक्षपरोक्षानुमानः कार्याणि परीक्षेत ॥ १३२ ॥ उपस्थित अनुपस्थित साधनों तथा अनुमानों द्वारा विचार करके कर्तव्योंका निश्चय करे।
विवरण- कौनसे साधन अपेक्षित हैं, उनमें से कितने हैं और कितने संग्रह करने हैं, वे सब मिल सकते हैं या नहीं, मिल सकते हैं तो कौनसे कैसे, कहांसे मिल सकते हैं ? इत्यादि सब बातोंका पूर्ण विचार करके मनुष्यको काम प्रारंभ करना चाहिये। इनता विचार करले नेसे हानि या असफलताकी संभावनायें नष्ट होजाती हैं।
(अपरीक्ष्यकारिताको हानि ) अपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥ १३३॥ श्री अर्थात् सफलता विना विचारे काम करनेवालेको त्याग देती है।
विवरण-- जो लोग बिना सोचे समझे, केवल लोभ या स्वार्य के अधीन होकर, काम प्रारम्भ कर देते और इस उद्योगसे लोगोंको केवल अपनी कार्यतत्परतामात्र दिखाना चाहते हैं, वे भनिवार्य रूप से प्रजाके वृणापात्र बनकर राज्यश्रीसे वंचित होजाते हैं। कार्यसे पहले उसके उद्देश्यकी सत्यासत्यता, अपना बलाबल, साधन सहयोगी, आयव्यय, देशकाल मादिकी परीक्षा करनी चाहिये ।।
( अधिक सूत्र ) न परीक्ष्यकारिणां कार्यविपत्तिः । ऊंचनीच सोचविचारकर कार्य करनेवालोके कार्यों में न तो विघ्न आता है और न उन्हें असफलता मिलती है।