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चाणक्यसूत्राणि
( व्यवस्थापक भोलापन न बरतें ) कार्यार्थिना दाक्षिण्यं न कर्तव्यम् ॥१२६॥ कार्यार्थी राज्याधिकारियोंको शत्रुओंको शंकासं भरे हुए देशमें भावुकतामें बहकर उदारता, सरलता, भोलापन और मिथ्या सचाई न बरतनी चाहिये।
विवरण- वे विपक्षके दोष खोजने और अपनी निर्बलता छिपाने में प्रमाद न करें, किसीका अनुचित विश्वास न करें और किसीको अपना भेद न लेने दें। ऐसा करनेसे उन और उनके राष्ट्रपर विपत्ति आजाना अनिव. नर्य होजायेगा।
नात्यन्तसरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वने तरून् ।
सरलास्तत्र छिद्यन्ते कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ।। मनुष्य सुपरिचित सुविश्वस्त लोगों के अतिरिक्त अपरिचित संदिग्ध लोगों के साथ सरल व्यवहार करने की भूल न करे। वह जाकर वनमें देखे कि वह सरल वृक्ष तो सब काट डाले जाते हैं और कुब्ज ही खडे रह पाते हैं ।
दाक्षिण्य शब्द सरलता और उदारताका वाचक है। यहां जिस सरलत: और उदारताको दोष के रूप में उपस्थित किया है, वह तो चालाक लोगों से धोखः दिलानेवाला भोलापन है। देवी संपत्तिरूपी सरलता या उदारताका निषध नहीं किया जारहा है। देवी संपत्तिरूपी सरलता या उदारताके व्यवहारका क्षेत्र केवल श्रेष्ठ लोग होते हैं । यहाँ विचारशून्यता तथा बुद्धिहीनताको ही सरलता, उदारता या भोलापन मानकर यह सूत्र लिखा गया है। भोले लोग सदा धूतोंके कपटजाल में फंसनेके लिये उद्यत रहते हैं । वे शत्रुको हितकारी मित्र और मित्रको वंचक शत्रु समझ लेते हैं। बुद्धिहीन लोगों के विचारशून्य मन दुष्टोंकी दुष्टताको फूलने फलने देने वाले उपजाऊ क्षेत्र बन जाते हैं। दुष्टों तथा देशद्रोहियोंके साथ की हुई सरलता या उदारता किसीकी व्यक्तिगत प्रशंसाका कारण बनकर भी राष्ट्र के साथ तो द्रोह ही है। देशद्रोही चापलूस