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________________ उपायज्ञताकी महिमा विवरण- अपने व्यावहारिक अनुभव तथा कल्पनाशक्तिसे कमको पूर्ण विवेचना किये बिना कामको अपनानेसे निश्चित हानि होती है। ( राज कर्मचारियोंकी नियुक्तिका आधार ) यो यस्मिन् कर्मणि कुशलः तं तस्मिन्नेव योजयेत् ॥ ११७॥ __ जो जिस कामको करनेमें कुशल हो उसे उसी प्रकारके कर्मका भार सौंपना चाहिये। विवरण- राष्ट्रके सत्यनिष्ठ बुद्धिमान् लोगोंको महत्वपूर्ण कर्तव्यों में लगानेसे राजाको यश, सुख तथा पुष्कल धन प्राप्त होता है । स्थानेष्वेव नियोज्यानि भत्याश्चाभरणानि च । न हि चूडामाणिः प्राज्ञः पादादौ प्रतिबध्यते ॥ भृत्य तथा आभरणादिका विनियोग यथोचित स्थानपर ही करना चाहिये। जैसे बुद्धिमान लोग चूडामाणको पैर आदि में न बांधकर सिरमें धारण करते हैं इसी प्रकार राष्ट्र के उत्तम कोटिके लोगोंको निम्नस्थानोंपर न रहने देकर उत्तमोत्तम पदोंपर नियुक्त करना चाहिये। पाठान्तर--- यो यस्मिन् कर्मणि कुशलस्तं तस्मिन्नेव नियोजयेत्। ( उपायज्ञताकी महिमा ) दुःसाध्यमपि सुसाध्यं करोति उपायज्ञः ॥११८॥ उपायज्ञ अर्थात् कर्मके अव्यर्थसाधनोंको पहचाननेवाला बुद्धिमान व्यक्ति कठिन समझे हुए कामों को भी सुकर वना लेता है। विवरण- योग्य लोगों को काम सौंपनेका शुभ परिणाम ही यह होता है कि कठिन काम में लगाये हुए दक्ष लोग उसे बातकी बातमें (अनायास) कर डालते हैं। पाठान्तर- दुःसाध्यमपि सुकरं करोति । कुशल व्यक्ति दुस्साध्यको भी सुकर बना लेता है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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