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चाणक्यसूत्राणि
लेना देना और कर्तव्य तुरन्त न किये जांय तो तो काल ही इनका रस पी जाता है । टके हुए कर्तव्य कर्तव्य ही नहीं रहते । कर्तव्यका देश तथा काल से अनिवार्य संबन्ध है । देश तथा काल परिवर्तित होते ही कर्तव्य भी अपना रूप बदल देता या नष्ट कर लेता है ।
पाठान्तर -- कालातिक्रमात् काल एवं तत्फलं पिबति । ( कर्तव्यपालन में विलम्ब अकर्तव्य )
क्षणं प्रति कालविक्षेपं न कुर्यात सर्वकृत्येषु ॥ १०९ ॥
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मनुष्य किसी भी निश्चित कर्तव्य में क्षणमात्रका भी विलम्ब न करें ।
पाठान्तर--- क्षणं प्रति कालस्वरूपं दर्शयति कालकृतेषु ॥
ठीक समयपर किये कर्तव्योंकी सफलता, मनुष्यको दिखा देती है कि यह काम जिस क्षण में किया गया है वही इसका सर्वोत्तम काल था । कार्यके उचित समयको पहचानना ही मनुष्य के सीखनेकी सर्वोत्तम कला है ।
( कार्य प्रारम्भ करनेमें ज्ञेयतत्व )
देशफलविभागों ज्ञात्वा कार्यमारभेत् ।। ११० ॥
मनुष्य परिस्थिति तथा सफलताकी संभावना दोनोंको पूर्ण रूपसे समझकर काम करे ।
अधिक सूत्र - देशे काले च कृतं फलवत् ।
कमोपयोगी परिस्थिति तथा उपयुक्त कालम किये काम ही सफल होते हैं ।
विवरण - कामकी उपयुक्त परिस्थिति समय तथा योग्य कर्ताको ढूंढ निकालना कार्यसिद्धिका मुख्य कारण है। सूत्र के चकार सूचित होता है कि कार्य के सम्बन्ध में पात्र ( कर्ता ) का विवेक करना भी आवश्यक है :