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________________ कार्यकाल टलनेका दुष्परिणाम आयव्यय कितना है ? ये सब बातें सोचकर अपनी शक्तिमें समझे तो करे न समझे तो न करे । कामका भी एक समय होता है । जैसे प्रत्येक मिट्टीसे पात्र नहीं बनते इसी प्रकार प्रस्यक समय प्रत्येक काम नहीं होते। कार्योपयोगी समय मा जानेपर ही कार्य होता है। वह कार्यके उचित समयको पहचाननेसे ही सिद्ध होता है। कार्यका समय बीत जानेसे करना निष्फल हो जाता है। कार्यसिद्धि में कार्य के उचित समयको पहचाननेका बहुत बड़ा महत्व है। पाठान्तर- देशकालवित् कार्य साधयति । अनुकूल काल तथा अनुकूल देश अर्थात् परिस्थितिको ... शेष अर्थ समान है। ( कार्यकाल टलनेका दुष्परिणाम ) कालातिक्रमात काल एव फलं पिबति ॥१०८॥ कर्तव्यका काल टल जानेसे काल ही उसकी सफलताको चाट जाता है। विवरण- कर्तव्य जिस समझ मूझता है, वही उसका उचित काल होता है। उससे अच्छा उसका और कोई समय संभव नहीं है। सृष्टिको व्यवस्था ही ऐसी है कि कर्तव्य उचित समयपर उसीको सूझता है, जिसका वह कर्तव्य होता और जिसे उसे अपने पूर्ण उत्तरदायित्वमें लेकर करना चाहिये । कर्तव्य के उचित समयको टालदेना उसके फलको नष्ट करडालना हो जाता है । सूझके समय ही कर्तव्यको करना चाहिये । उसे न तो फिरके लिये टालना चाहिये और न उसे कर्तव्यहीन मनुष्यके कंधोंका बोझा बनाकर उनसे उसे बिगडवाना चाहिये । कर्तव्यको फिरके लिये टाल नेसे फिर के लिये उपस्थित कर्म उस स्थगित कर्मको नहीं होने देते । आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः । क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम् ॥
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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