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[ ६० 1 ३-बुद्धिगत सब विचारोंको भुला कर स्वस्थ रहो।
२१-६०४. मैं ने वाह य द्रव्य के सुधारने बिगाड़ने की
धुन में अनेक चेष्टायें की किन्तु मैंने अपने लिये क्या किया ? किये का उत्तर दो और इसे कई बार विचारो कि "इस समय अपने लिये क्या कर रहा हूं।
२२-६०५. इसका भी विशेष विवरण के साथ उत्तर दो कि
जो मेरी चेष्टा हो रही है वह मुझ ज्ञानस्वरूप आत्मा के लिये साधक है या बाधक ?
२३-६१०. क्या यह चेष्टा बंध करने वाली नहीं है ?
(विचारो)।
२४-८२४ जैसे चावल ग्राह्य है परन्तु धान के बोने से छिलका हटाने पर वह प्राप्त होता है इसी प्रकार निश्चय तत्त्व आदेय है परन्तु आचार के पालने से आचरण में,
आचरण से भिन्न ब्रह्मतत्व के समझने पर वह प्राप्त होता है। धान समेट कर भी छिलके पर किसी की