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[ ५६ प्रसन्नता (निर्मलता) में ही तुम्हारा कल्याण है ।
१८-४०८, मनोहर ! तुम अपने विषय में गृहविरत
स्यागिजनों से ही सलाह लो और सलाह लेकर कुछ समय तक तुम स्वयं विचार करो, जो उत्तम पथ जचेशक्ति न छुपा कर उस पथ पर चलो।
# ॐ # १६-५३१. सुखी होना भी तेरे हाथ की बात है और दुखी
होना भी तेरे हाय की बात है अब तुझे जो भावे सो कर, परन्तु देख यदि यह नरभव संक्लेश में ही गमा दिया तो फिर तेरा कुछ ठिकाना न होगा।
२०-५६८. मामायिक में इतनी बातें भी किया करो । १-स्वभावसिद्धि के लिये हमने क्या उन्नति की ? या अवनति की उसका हिसाब लगाना । २-स्वभावसिद्धि का वाधक राग परिणाम है जो नैमित्तिक है, वह राग किसके निमित्त से हो रहा है उसी से बात करो-क्या हितकारी है ? कत्र से साथ है ? कब तक साथ रहेगा ? आदि ।