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४-४६, लेखक का लेख प्राय: पुस्तक में ही रहता, यदि हृदय में हो जाय तब शीघ्र उसका और उसके निमित्त से अनेकों का उद्धार हो जाये ।
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५ - २५३. अनादि संतति से चले आये कर्म के उदय के निमित्त से क्षुधा आदि वेदनायें व ज्वरादि आमय यद्यपि हो जाते हैं उन्हें यदि सहन नहीं कर सकता तो न्याय के विरुद्ध प्रतिकार कर लो, पर प्रतिकार में
आसक्त मत हो और न उन आपदावों से अपन नाश मानो, अपने स्वरूप को सदैव लक्ष्य में रखो ।
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६ - २८१, जो कल्याण की बात चार भाइयों के सामने कहते हो वह यदि एकान्त में ध्यान का विषय हो जाय
तब तो संतोष की बात है अन्यथा गुजारा करने में ही
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शुमार रहोगे ।
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निम्नलिखित प्रत्येक आचार्योपदेश गंभीरता से और उनसे अपने लिये शिक्षा ग्रहण करो :