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[२६] २०-६२६. यह आत्मा यश किसका चाहता है ? आत्मा का या सूरत का या नाम के अक्षरों का ? विचार करने पर यश कुछ भी वस्तु नहीं रहती ।
ॐ
२१-६३०. यदि आत्मा का यश चाहते हो तो जो लोग
प्रशंसा करते हैं वे आत्मा को आत्मा तो रस, रूप, अगंध, व निराकार है, जिस स्वरूप की दृष्टि में रूप है उसका तो नाम भी नहीं और न लिये व्यक्तित्व है उसकी क्या प्रतिष्ठा होती, प्रतिष्ठा यही है जो स्वयं स्वयं को जाने और स्वरूप में प्रतिष्ठित रहे ।
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क्यों जानते हैं ?... शव्द, अव्यक्त, चेतन
वह सामान्य व्यवहार के
उसकी तो
स्वयं के
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२२-६३१. यहि सूरत का यश चाहते हो तो सूरत पौद्गलिक है अपने से अत्यन्त भिन्न है हाड़ मास चाम का पुतला है उसका गुण तो रूप रस गंध सर्श है उन्हीं में परिणमता है, अन्य गुण ही उसमें ऐसे क्या हैं जिससे सूरत प्रतिष्ठा के योग्य हो अथवा सूरत की प्रतिष्ठा से आत्मा को क्या मिल जाता ? सूरत की चित्र रह