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[ २२ ] वस्तु का सदुपयोग हो तथा स्व-पर दोनों के प्रसन्नता और निर्मलता रहे।
ॐ ॐ + १७-६१६. तुम तो अनादि अनंत हो किसी एक पर्याय
रूप नहीं हो, जब इस पर्याय रूप ही तुम नहीं हो तब . इस पर्याय के व्यवहार में क्या रुचि करना है ।
१८-५६२. जब तुम त्यागी न थे मात्र पडित थे तब तुम
व्यवहार कार्य में व्यासक्त त्यागियों को देखकर अपने मन में मुग्ध और नरभव को व्यर्थ · खोने वाले मानते थे किन्तु अब तुम स्वयं त्यागी हो कर अपने आपको उस प्रकार अपने मन में नहीं सोचते ? कितनी गहरी मोहमदिरा पी ली।
१३-६६६. व्यवहार में किसी के बल पर कोई कार्य मत करो, जिसे आप कर सकते हो उस कार्य को करो अन्यथा शल्य और सबलेश हो जायगो ।
२०-७३६. बिगड़े हुए व दुर्जनों का सुधार सरल व्यवहार