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२ भेदविज्ञान
१-२. विभाव भाव का विश्वास नहीं क्योंकि वह क्षणिक है,
स्वभावविरुद्ध है, संयोगज है परन्तु खेद है उसके उदयकाल में उसे तुम ऐसा विश्वास्य बना लेते हो मानो वह तुम्हारा हितू ही हो, अरे वही तो आपदा है, आपत्तिजनक है, आपत्तिजन्य है।
२-४. विवेक तो अलग करने को कहते हैं और ज्ञान का
वही फल है, तभी तो लोकों ने विवेक का अर्थ ज्ञान कर डाला अर्थात् भेद विज्ञान ही विवेक है ।
ॐ ॐ 5 - ३-६. मनोहर ! जो भी तुम्हें दिखता है, वह सब अजीव
हैं, उनमें सुख गुण है ही नहीं, वे तुम्हें सुख कैसे दे सकते ? अरे ! जिनमें सुखगुण है ऐसे अन्य आत्मायें भी अपना सुखगुण तुम्हें त्रिकाल में नहीं दे सकते, सब