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[ २ ] लोभ का साधन बन सकता है, अतः वास्तविक ध्येय से च्युत कभी मत होओ।
३-७६८. लिखने के उद्देश्य कितने ही हो जाया करते हैं उन्हें संक्षेप में कहा जाय तो उद्देश्यों के दो विभाग हो जाते हैं-१-सत् उद्देश्य २-असत् उद्दश्य । जो आत्म हित पर पहुंचा देवें वे सत् उद्देश्य हैं, और जो अहित में भ्रमावें वे असत् उद्देश्य हैं।
४-७६६. मेरे लेखन के उपयोग से मेरी परिणति अशु
भोपयोग से पृथक् रहे अथवा इसके वाचने के निमित्त से कोई अन्य अपने उपादान से अपने को अबलोकित करके शान्ति प्राप्त करें ये सत्, उद्देश्य हैं। . :
५-७७०. बहुत से लेखक अपनी कृति लिख गये हैं मेरी
भी कृति रहे अथवा यश का प्रसारक चिन्ह रहे अथवा लोक समझे कि ऐसा इनका ज्ञान है अथवा लोक मुझे मानते हैं तो कुछ भी तो उनके लिये होना चाहिये ये सब असत् उद्देश्य हैं। .