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मनोहर वाणी
आत्मसम्बोधन
अथवा
१ लेखनोद्देश्य
कल्पना
विपयानुक्रम कल्पना क्रम कल्पना (मनोरथ) १-१. मनोहर ! तुम उत्कृष्ट तच को विचार करके भी कभी
अतत्व में मुग्ध होते हो और कभी तत्व की ओर जाते हो, इस लिये जब तुम्हारे मनोरथ उठे उन्हें निज के बोध के अर्थ पढ़ने के लिये लिखते जाना चाहिये ।
२-२६५. मनोहर ! जो तुम लिखते हो उसका ध्येय अपने
में जागृति करे रहना रखो, केवल प्रकट करना प्रतिष्ठा के