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[ २८ ] सकती है ?
१४-७१३. यह कभी मत सोचो-"मुझे कोई विपदा ही
नहीं आ सकती सब मेरे अनुकूल हैं, जब पाप का उदय आता है तब सब प्रतिकूल हो जाते हैं, दुःख के अनुरूप संयोग वियोग हो जाता है, इस कारण दुःख न चाहने वालों को दुःख के मूल पापों की निवृत्ति का सहारा लेना चाहिये अन्य सहारा सब व्यर्थ है ।
जयप्रकाश रस्तौगी के प्रबंध से विजय प्रिंटिंग प्रेस, मेरठ में मुद्रित ।
जयप्रक