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[ २८ ] तो ममता राग द्वेष से रहित आन्तरिक उपयोग शरण है अतः इन आभ्यन्तर, बाह्य शरण के अतिरिक्त किसी भी आत्मा में शरणपने की आशा मत करो ।
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११- ६८७, इस आत्मा को यदि शरण है तो खुद की निर्मलताही शरण है ।
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१२-६८८, व्यवहार में शरण है तो पञ्चपरमेष्ठी (सशरीर परमात्मा, शरीर परमात्मा, साधुमंत्रपति, उपाध्याय, साधु) हैं, अरे ! वहां भी परमेष्ठी (उत्कृष्ट पद में स्थित) का ध्यान रूप खुद का परिणाम शरण है, यह परिणाम भी निर्मलता का कुछ भी विकास हुए बिना नहीं होता, इसलिये यह निःसंदेह सिद्ध हुआ कि इस आत्मा को यदि कोई शरण है तो यह अद्वैत ब्रह्म (आत्मा) ही शरण है।
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१३ - ११६. जहाँ दर्शन ज्ञान चारित्र तप आदि के चरणों का शरण दर्शनाचारादि से परे शुद्धदर्शनादि स्वभावमय आत्मतत्त्व की प्राप्ति के लिये लिया जाता वहाँ ( उस ज्ञानी के उपयोग में) अन्य द्रव्य में शरणबुद्धि कैसे हो