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[ २७१ ] २०-६०२. अपना चरित्र गठित रखो फिर तू अजेय है व __ त ने अपने लिये सर्च चमत्कार पा लिये ।
२१-७२६. जगत में किसी को बुरा न समझो, बुरा समझो
अपने कपाय भावों को, उनसे घृणा कर; घृणा रहित होते हुए अपने प्रात्मा में स्थिर हो अात्मसेवी बनो ।
२२-८५६. यदि कोई पुरुष किसी के प्रेम में आकर अपने
को भूल जाता है तो क्या यह यात्मा में रुचि करके पर को नहीं भूल सकता ? अात्मरुचि करो, सर्व सिद्धि पा लोगे।
卐 ॐ ॥
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