________________
[ २७० ]
अच्छा है या बुरा इस बात को स्वभाव को लक्ष्य में रख कर अपने से पूछो ।
फॐ फ
हित अपने ही भाव
१६- ५११. यदि बाह्य अर्थ तुम्हारे सहजज्ञान में आवे तो हानि नहीं परन्तु अभी तो यह दशा नहीं है अतः आत्मा के श्रद्धान आचरण द्वारा आत्मा की सेवा कर । फॐ फ १७- ५४२. अपना हित और अपना से है अतः हत पाने के लिये और हित से दूर होने के लिये अपने भाव को सँभालो, आर्त रौद्र परिणाम में कुछ भी लाभ नहीं है यह तो दुर्दशा के ही मूल हैं । फॐ १८- ५६०. दूसरों को अपने अनुकूल करने में या दूसरों के अपने अनुकूल होने में क्या भलाई है ? अरे ! अपने को अपने वश कर लो तो सर्व सिद्धि है ।
फ्र ॐ फ
१६- ५८०. ज्ञान स्वरूप आत्मा के अभिमुख उपयोग करना व्यापार है । अन्य वाह्य करोड़पति हो जावे या
ही मनुष्य जन्म के लाभ का
पर उपयोग करने वाला चाहे
सम्राट् हो जावे सब हानि का व्यापार है ।
卐 5