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[ २५२ ] सब जीव निकले । प्रथम तो दृष्टान्त विरुद्ध है क्योंकि अनेक विन्दुओं का संघात समुद्र है और पृथ्वी पेड़ के । परमाणु अनेक द्रव्य हैं खैर ! वे पृष्टव्य हैं-कि हम सब जीव, द्रव्य हैं या पर्याय ? यदि द्रव्य हैं तब तो यह विज्ञान का नियम है कि किसी द्रव्य से कोई द्रव्य पैदा नहीं होता, सर्व द्रव्य स्वतः अनादि सत् हैं । यदि हम सब पर्याय हैं तो क्या एक ब्रह्म की हैं या अपने अपने ब्रह्म की ? यदि एक ब्रह्म की पर्याय हैं तब तो पर्याय का असर द्रव्य में होता सो अनेक प्रकार के सुख, दुःख, राग, द्वष रूप अनंत अनपेक्षित विरुद्ध पर्यायें एक द्रव्य में एक साथ कैसे हो सकती हैं; खैर ! मान भी लिया जावे तो हमारे सुख दुःख-का असर अनुभव एक ब्रह्म को ही होना चाहिये हमको नहीं, और ऐसा होने पर वही दुखी होवे हम लोग क्यों दुखी हो रहे हैं . तथा जो दुखी होता वह ईश्वर नहीं । यदि हम लोग अपने अपने द्रव्य के पर्याय हैं तो सिद्ध होगया कि जगत् अनंत द्रव्यों को समुदाय है और प्रत्येक द्रव्य अपनी अपनी पर्याय से परिणत हो रहा है अतः सब के आधार स्वयं ही सब हैं; किसी एक पदार्थ से ये जीव