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[ २५१ ] १३- ४६५. तात्विक बात यह है— जब यह श्रात्मा इष्टानिष्टादि विकल्पों को त्याग करके निर्विकल्प ज्ञानमात्र हो जाना है तब उपाधि रहित परिणति के कारण समस्त निर्विकल्प श्रात्माओं का सदृश अभेदरूप परिमणमन हो जाता है अतः जात्या एक है, पूर्ण सदृश होने पर
भी आधार भिन्न भिन्न है पर वहां तो एक ब्रह्म से भी
बढ़कर बात है जो उन्हें तो ये भी भेद अनुभृत नहीं
होता ।
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१४-४७१. सोचो - जो द्रव्य है उसका घंटे बाद, कल व और कभी कुछ परिणमन तो होगा ही होगा उस द्रव्य
की स्वतन्त्रवृत्ति से पर होगा तो अवश्य ! अब जो होगा
उसे कोई निर्मल निर्विकल्प श्रात्मा जाने तब उसमें द्रव्य को आधीनपना क्या आया ? मूर्योदय का समय जान लेने से क्या उदय के लिये सूर्य परतन्त्र होजाता ? या सूर्य का व्यापार रुक जाता ?
फ्रॐ फ्र १५-४६६. कुछ लोग कहते हैं - कि जैसे समुद्र से बबूला या पृथ्वी से पेड़ निकलता इसी तरह एक त्रह्म से ये