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४८ इच्छा
१-३५. पाप की इच्छा करना अशुभ परिणाम है-वह पुण्य
का बाधक है, यह तो स्पष्ट ही बात है परन्तु पुण्य को इच्छा करना भी अशुभपरिणाम व पुण्य का बाधक है, वीतराग भाव की रुचि होते हुए भी जो शुभयोग हो जाता है वह विशिष्ट पुण्य का बंधक है, सामान्य पुण्यबंध तो प्रायः सर्व संसारी के हो जाता ।
२-११५. अनिष्ट विषयों में अरुचि का होना इष्ट विषयों में रुचि का द्योतक है।
+ ॐ म ३-११८. जब त्रिलोकस्थ पदार्थ के ज्ञान की इच्छा है तम त्रिलोकज्ञाता नहीं और जब इच्छा नहीं तय त्रिलोकज्ञ होजाता।
ॐ ॐ ॐ ४-१२४. भोग की इच्छा से पुण्य करने वाले के यदि पुण्य