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[ २०५ ] का भाव न करना और कदाचित् दिख भी जावे तब
दुवारा उसे देखने का भाव भी न करना न देखना । ६-श्रोत्र का विषय-राग भरे गायन या शब्द सुनने
का भाव भी न करना। ७-क्रोध-गुस्सा न करना न किमी का बुरा विचारना । -मान-सन्मान से न भलाई समझना न अपमान से बुराई समझना न अपनी प्रशंसा करना न पराई निन्दा करना। ह-माया-छल कपट की कोई बात नहीं रखना । १०-लोभ-किसी भी पदार्थ का लालच नहीं करना ।
卐 ॐ ॥ ह-६३३. यश अपयश से आत्मा की भलाई बुराई नहीं,
> अपनी निर्मलता और मलीनता से ही कल्याण और • अकल्याण है।
卐 ॐ ॥ १०-६४०. छिजदु वा भिजदु वाणिजहु वा अहब जादु
विप्पलयं । जमा तह्मा गच्छदु तहवि हु ण परिग्गहो मझ ॥... पर पदार्थ किसी भी अवस्था को प्राप्त होनो उनसे आत्मा