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आपत्ति कर सकते हैं | आपत्ति तो मात्र इतनी हीं है जो तेरी बाह्य पर दृष्टि है, इस वाह्यदृष्टि को हटा फिर सुख ही सुख है ।
फ फ १२- ५६१. राग की आग में यह आत्मा सुन रहा है और संसार के ये दृश्य पदार्थ उस आग को बढाने के लिये ईधन बन रहे है | आत्मन् ! सोच यह सब कुछ तुम्हें जलाने के लिये राग आग का ईंधन है, इस ईंधन को चटोर कर खुद मत मरो ।
फ्रॐ फ
१३- २७६. तू ने लौकिक जनों से विपरीत तथा सम्यक् त्यागमार्ग में कदम रखा है अतः लौकिकों का आराम,
वैभव, अनुराग और मग्नत्व देख कर किश्चित् भी विस्मय मत करो और न आदेयता की झलक डालो ।
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