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। ४१ लौकिक वैभव
१-३६३. जो भी वैभव संसार में दीखता है वह पहिले अनंतवार अनंत तीर्थकर, चक्रवर्ती नारायण, महाराजों द्वारा भी भुक्त एवं पर द्रव्य होने के हेतु पच न सकने के कारण वान्त है अतः यह वैभव अरम्य और अविश्वास्य है।
२-४१५. मनोहर ! इस बात को कभी मत सोचो कि लोग
क्या कहेंगे अथवा अमुक कार्य मैं बहुत दिन से कर रहा व सोच रहा इरो कैसे भुलाऊँ या त्यागू सर्व माया है अस्थिर है अहित है।
३-४१७. चेतन व अचेतन वाद्यपदार्थों के सम्बन्ध से ही दुःख उठाना पड़ रहा है इसलिये यदि क्लेश से बचना चाहते हो तो उनसे मनसा सम्बन्ध छोड़ो, अन्यत्वभाधना का ध्यान करो।