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आधार व आश्रय ही कुछ नहीं मालूम होता, यहाँ तो ये सारा बिना शिर पैर के नाच हो रहा है ।
ॐ
६ - २३६, दूसरों को प्रसन्न करने की चेष्टा गाढ़ व्यामोह का फल है, अपने विशुद्ध भावों को उपार्जित कर स्वयं को प्रसन्न करो ।
फ ॐ
१०-२१. जब तक मोह का लेश भी सच है तब तक आत्मा का उद्धार नहीं ।
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