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३८ अध्यवसान
१-३७६. भेदविज्ञान का उदय रागादि की निवृत्ति करता
हुआ होता, अतः यदि अपने सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान का निर्णय करना हो तो रागादि से हटे रहने वाले परिणाम से करो । अध्यवसान ही कल्याण का घातक है मोह रागद्वषादि मलिन परिणामों को अध्यवसान कहा गया
२-४४६. तुम्हारे दुःख का मूल तुम्हारा मोह राग और
द्वप है अतः मोह रोग द्वष को खोजो और आत्मस्वभाव के चिन्तन द्वारा उन परिणामों से दूर रहने का प्रयत्न करो, दुःख की शान्ति के अर्थ अन्यपदार्थ पर आजमाइश मत करो।
३-४५२. चाहे धनी हो या निर्धन चाहे विद्यावान् हो या
मूर्ख चाहे प्रतिष्ठित हो या अप्रतिष्ठित सभी अपना समय ही बिता रहे हैं, केवल उनका ही कार्य धन्य है जो अहं