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[ १६४ ] निःशल्य और प्रसन्न रहेगा।
६-७१८. शारीरिक काई कष्ट नहीं उसे सह लो शारीरिक कष्ट से आत्मा की हानि नहीं, शरीर की भी विशेष क्षति नहीं परन्तु मानसिक व्यथा से आत्मा और शरीर दोनों की हानि है।
१०-८७७. किसी भी परिस्थिति में होओ, आत्मा के एका
कोपन को जानकर प्रसन्न रहो, चिन्ता कमो मत करो। चिन्ता चिता से भी भयंकर है, चिता तो मृतक को जलाती है परन्तु चिन्ता तो जीधित को जलाती रहती है अत्यन्त संक्लेश पैदा करती है। आत्मन् ! जब काई विपदा आवे आत्मस्वरूप को देखकर आत्मा के ही पास बसो; जगत तेरे लिये कुछ नहीं है।
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