________________
[ १२ ] ही पढ़ना प्रारम्भ किया। १॥ वर्ष तक घर पर ही विद्याध्ययन किया। पाठशाला में बच्चों का पिटना देखकर घबराते थे। एक दिन पाठशाला न जाने के अपराध में आपकी माता जी ने
आपको पोटा। क्या विचारा आपने उस समय 'यदि मैं खम्भा (जो कि सामने खड़ा था) होता तो आज मुझे पिटना व दुःखी होना तो न पड़ता।' यह हो सकती है असाहजिक ज्ञान के अभाव की प्रतीक्षा।
विद्यार्थी मनोहरलाल:--
एक बार श्रीमती चिरोंजाबाई जी ने एक गणित का प्रश्न आपको हल करने को दिया जिसका उत्तर ठीक न देने पर उन्होंने कहा 'अगर नहीं पढ़ोगे तो तुम्हारा नाम मनोहर रख दूंगी।' आपने पूछा 'मनोहर का अर्थ ?' उत्तर मिला 'गया' तब आप बोले 'नहीं, ऐसा न करना। आप मुझे मनोहर न कहना । मैं पढ़ गा पाठशाला जाऊंगा। तभी से आप 'मनोहर' हुये। और आपकी सौम्य मूर्ति भी तो मनोहर ही है। सागर विद्यालय पहुंचे। बुद्धि तीक्ष्ण थी। एक बार आपके गुरू पूज्य श्री वर्णी जी ने आप से 'तव पादौ मम हृदयो मम हृदयं तव पद तये लीनं, श्लोक याद करने को कहा तो आप तुरन्त ही बोल उठे कि ऐसा ही हिन्दी में भी तो है कि 'तुब पद मेरे हिय में मम हिय तेरे पुनीत चरणों में।' यह है आपकी कुशाग्र बुद्धि का उदाहरण । आश्चर्य है कि खेल कूद के बहुत शौकीन होते